आत्म विकास का दिव्य सदन
गुणायतन एक ऐसा ज्ञान मन्दिर बन रहा है, जो जैन सिद्धान्तों की वैज्ञानिक प्रयोगशाला बनकर सबके आत्म विकास का दिव्यद्वार बनेगा। जहाँ आकर मानव अपने जीवन के मर्म को जान सकेगा, सम्यग्दृष्टि और मिव्यादृष्टि के फर्क को पहचान सकेगा।

गुणायतन के जनक
पूज्य प्रमाणसागर जी वर्तमान युग के प्रधान सन्त है। भगवान महावीर के शासन काल के असाधारण यशस्वी सन्त है, उन्होंनें गत 10 वर्षों की न्यूनतम अवधि में शिखर जी के चतुर्मुखी विकास में सर्वोच्च एवं ऐतिहासिक कीर्तिमान स्थापित किए हैं। अपरिमित ऊर्जा और असीमित आनन्द से ओतप्रोत अपने व्यक्तित्व को वे प्रत्येक व्यक्ति के निरन्तर विकास की प्रक्रिया में सहभागी बनाते हैं। हर पल पूर्ण जीवन्तता के साथ जीते हैं। प्रतिक्षण संवेदनशील, सजग और सक्रिय रहते हैं। वे अपार मनोबल से परिपूरित सन्त है। अदम्य साहस, स्वस्थ शरीर एंव पवित्र भावनाओं के साथ मोक्ष पथ पर आगे बढ़ रहे हैं। सोलह कारण भावनाओं और अनुप्रेक्षाओं की सतत जाप देते हुए वे गुणस्थानों के सोपानों पर ऊपर उठ रहें हैं। सिद्ध भूमि के अदृश्य पथ पर आगे बढ़ रहें है। प्रमाणसागर जी ने अपनी कुंडलिनी और आध्यात्मिक शक्तियों के सभी केन्द्रों को जागृत कर लिया है। इन केन्द्रों के जागरण से उनका व्यक्तित्व अपरिमित शक्ति का भण्डार और प्रभावी स्रोत बन गया है।



क्या है गुणायतन?
‘गुणायतन’ मुनिश्री के प्रौढ़ चिन्तन और परिपक्व परिकल्पना का जीवन्त प्रमाण है। जैन धर्मावलम्बियों के शिरोमणि तीर्थस्थल श्रीसम्मेद शिखर जी की तलहटी में निर्माणाधीन यह एक ऐसा उपक्रम है, जिसके माध्यम से पोथियों की बातों को पल में जाना जा सके। गुणायतन एक ऐसा ज्ञानमन्दिर बनने जा रहा है, जो जैन सिद्धान्तों की प्रयोगशाला बनकर मानवमात्र के आत्मविकास का दिव्य द्वार सिद्ध होगा।
“गुणायतन बनेगा सभी की आशा
बच्चे भी समझेंगे आगम की भाषा”
- संस्थापक सदस्य
- निर्माण नायक
- स्तम्भ
- सूत्रधार
- निर्माण सारथी
- निर्माण मित्र
- निर्माण निधि
- प्रतिमा स्थापना
- ज्ञानमन्दिर
- एनिमेशन होलोग्राम
- 9डी स्क्रीन
- आत्मिक दिग्दर्शन
- 270डिग्री स्क्रीन
- गुणस्थान
- भव्य जिन मन्दिर
- ऑडिटोरियम
- संत निवास
- यात्री निवास
- कम्प्युटराइज्ड लाइब्रेरी
- ध्यान मन्दिर
- सल्लेखना भवन
- कीर्ति स्तम्भ

गुणायतन क्यों?
तीर्थराज श्री सम्मेद शिखर समस्त जैन धर्मावलम्बियों का शिरोमणि तीर्थ स्थल है। यहाँ देश- विदेश से लाखों श्रद्धालु और पर्यटक प्रतिवर्ष आते हैं। इस परम पूज्य तीर्थ पर पूज्य मन्दिर के अतिरिक्त ऐसा कुछ भी नहीं है, जो यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं / पर्यटकों को आकर्षित कर उन्हें जैन धर्म के मर्म का बोध करा सके। सन्त शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनिश्रेष्ठ प्रमाणसागर जी महाराज का ध्यान जब इस ओर आकृष्ट किया गया तो उनके मुख से सहज ही निकल पड़ा। यहाँ कुछ ऐसा होना चाहिए, जिससे पोथियों की बातों को पलों में जाना जा सके। ‘मुनि श्री’ की इसी प्रेरणा का परिणाम है- ‘गुणायतन’, जिसे शब्द, ध्वनि, प्रकाश और चल चित्र के माध्यम से प्रस्तुत करने जा रहे हैं।

कैसा है गुणायतन ?
कई लोग गुणायतन शिखरजी को एक ऐसे स्थान के रूप में मानते हैं, जहाँ वे मानसिक शांति और आंतरिक शुद्धता की तलाश करते हैं। जैन अनुयायी और अन्य धार्मिक लोग यहाँ ध्यान, पूजा और साधना करने आते हैं ताकि वे आत्मिक उन्नति और मोक्ष की ओर बढ़ सकें।
“गुणायतन मुनिश्री के प्रौढ़ चिंतन और परिपक्व परिकल्पना का प्रमाण है|”
चौदह गुणस्थान
जैन दर्शन में आत्मशक्तियों के विकास अथवा आत्मा से परमात्मा बनने की शिखर यात्रा के क्रमिक सोपानों को चौदह गुणस्थानों द्वारा बहुत सुंदर ढंग से विवेचित किया गया है. जैन दर्शन में जीव के आवेगों-संवेगों और मन-वचन-काय की प्रवत्तियों के निमित्त से अन्तरंग भावों में होने वाले उतार-चढ़ाव को गुणस्थानों द्वारा बताया जाता है. गुणस्थान जीव के भावों को मापने का पैमाना है.
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